*पुलिस विभाग!!! सदरक्षणाय???खलनिग्रहणाय???*
“जिंदगी की राह पर चालते हुए, हर कदम ठोकर झेले हैं,
काफिर ना समझो हमें, हर दर्द दिल पे झेले हैं,
देखो ना हमें इन शक के नझरो से,
सौ जख्म जेहन पर झेले है हमने,
खुदके दामनको ना समझ चमकिला इतना,
देख ईस दुनिया को गौर से, हर करम के कपडे मैले है”
आज हम ऊन कार्यतत्पर कहे जानेवाले लोगों के बारे कुछ केहना चाहते हैं, जिनके कार्य की हम सब सदैव प्रशंसा करते हैं. सदरक्षणाय खलनिग्रहणाय यह ब्रीदवाक्य जिनके लिये समर्पित हैं, समाज मे शांती, कायदा और सुव्यवस्था रखनेमे जीनका बडा योगदान होता हैं….जी हां…पुलिस व्यवस्था!!! आज हम बात करेंगे ऊन पुलिस वालो के बारेमे जीन्होने कोरोना कालमेंभी डटकर कार्यतत्पर रहे हैं.
कार्यतत्पर!!! एक क्षण रुकिये!!! क्या ये वाकईमे सच हैं?
नही…जी हां नहीं….आज हम आप सभी भारतवासीयों को एक कडवे सच से अवगत कराने वाले हैं, जीसके बारेमे हमारि भारत की जनता कम ही जानती है.
जी हां…हमारी पुलिस व्यवस्था इस क्षेत्र को लेके वाकईमे अकार्यक्षम हैं…जी हां!!! यह क्षेत्र हैं घरेलु हिंसाचार और दहेज प्रतारणा…यह सच हैं के ईतने सालों से आजतक पुलिस विभाग वाकईमे अकार्यक्षम रहा हैं, इसिलीये जितने घरेलु हिंसाचार और दहेज प्रतारणा के जो भी मामले दर्ज होते हैं, इनमेसे सच कहे तो सिर्फ 4% मुकदमे सच साबित हुए है, बाकी 96% मामलों में आरोपियो को बरी किया गया है. इसका मतलब 96% मुकदमे महिलाओंने फर्जी, झुठे तौर पे दर्ज कराये थे और यह आंकडे हम नही बल्की आजतक के आर. टी.आई.(RTI) के आंकडोके अभ्यास द्वारा कह रहे हैं.
हर साल घरेलु हिंसाचार और दहेज प्रतारणा के मामलो के मोटे मोटे आंकडे महिला संघटनाओंद्वारा, राजनीतिकों द्वारा, अखबारों में दिखाये जाते हैं, यह आंकडे झूठे होते हैं क्युंकी इनमेसे 96% प्रतिशत झूठे साबित हुए है.
हम आपको ईसी सचसे अवगत कराना चाहते है के इतने मोटे तौरपर झुठे केसेस होने से पहले जो पुलिस प्रक्रिया सही तरीके से होनी चाहिए, वह होती नहीं है. उनके कारण तो बहोत सारे हैं, ईनमेंसे एक सबसे बडा कारण है…भ्रष्टाचार और रिश्वत, घूस लेना. पुलिस विभाग द्वारा किये गये कम्प्लेंट मे पती के खिलाफ घरेलु हिंसाचार और दहेज प्रतारणाके मुकदमे दर्ज कर देती हैं. इनमेभी सही तरिकेसे जांच पडताल इंव्हेस्टिगेशन ना करते हुए पुरुष या पतिको पुलिस द्वारा डराया, धमकाया जाता है. फिर तो सेटलमेंट के नामपे पतीसे मोटी रकम लेकें मामलेको रफा दफा करनेकी कोशिश होती है.
एसा पाया गया है, के महिला संघटनाओं द्वारा भी घरेलु हिंसाचार, दहेज प्रतारणा के मोटे आंकडे दीखाये जाते हैं, यह सिर्फ उनके गवर्नमेंट ग्रँट के पैसे पानेके लिये.
सरकार कोईभि हो, सभी पार्टीज महिला वोट बँक को हथियाने के होर मे पुरुषोंपे, पतियो पे होने वाले अन्याय को नजरअंदाज करते हैं, कानून में दुरुस्ती, बदलाव करने में किसिको भी रुची नही होती है. इसके कारण बेचारा पुरुष, पती बरसो पुलिस थाना और अदालतोंके चक्कर काटते राहत हैं.
खैर हमारी एक महत्त्वपूर्ण मांग हैं के, जो 96% प्रतिशत झुठे, फर्जी मुकदमे पुरुष झेल रहे हैं, क्या ऊन फर्जी केसेस करनेवाली महिलाओंपर भी कडी से कडी कारवाई होनी चाहिए…जी हां…. जीस दिनसे इन फर्जी मुकदमे करनेवाली महिलाओंपर कारवाई की जाएगी ऊस दिनसे झुठे, फर्जी मुकदमे करने बंद हो जाऐंगे. जबतक सभी राजनीतिक दलोने एकतरफा महिलावादी, पुराने कालबाह्य कानूनों मे बदलाव नही लाती, तबतक भारतका पुरुष सुरक्षित नहीं है और पुरुष आयोग के बिना यह संभव नहि हैं.
“तोह फिर चलो फिरसे एक बार पुरुष आयोग की मांग करे”
लेखक – दर्शन पवार
पुरुषों के हक के लिये, सहायता के लिये तत्पर “वास्तव फाऊंडेशन”
हेल्पलाईन नंबर – 8882498498