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ऐसे भी पापा – Vaastav Foundation

ऐसे भी पापा

सौरभ और माया की शादी बहुत धूम धाम से हुई थी. होती भी क्यों नहीं, पैसे की कोई कमी तो थी नही, दोनों उच्च शिक्षा प्राप्त करके मलटीनैशनल कंपनी मे अच्छे पद पर काम करते थे. सौरभ एक अच्छे बड़े फलैट में अपने मां बाप के साथ रहता था. शुरू के छ़ महीने तो विदेश, इधर उधर घूमने में कैसे निकल गए पता ही नहीं चला. उसके बाद दोनों अपने अपने आफिस मे बीज़ी रहने लगे. घर मे नोकरानी थी ही इसलिए काम की तो कोई मुश्किल नहीं थी लेकिन माया को सास ससुर के साथ रहना अपनी आजादी पर रोक  लगी. माया ने सौरभ को यह कहते हुए  कि “नई नई नोकरी मे ज्यादा टाईम तो देना ही पड़ेगा और किसी काम के लिए मना भी नहीं कर सकते और मम्मी पापा को मेरा देर सबेर आना कुछ अच्छा नहीं लगता ” एक अलग फलैट ले कर रहने की जिद की. सौरभ ने लोन ले कर पास मे ही एक अच्छा सा फलैट ले लिया और दोनो उसमें रहने लग गए. अब माया को भी फ्रीडम मिल गई, आफिस मे कितना टाईम लगाना है, कब टूर पर जाना है कोई रोक टोक नहीं. घर मे काम के लिए एक नोकरानी रख ली थी तो वहां भी कोई प्राबलम.नहीं थी. उधर जब मन होता, सौरभ आफिस के बाद अपने माता पिता के पास समय बिताने आ जाता, दोनो को अच्छा लगता.
देखते देखते दो वर्ष बीत गए, माया ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया, नाम रखा गया चहक. चहक के आते ही पूरा घर चहकने लगा था. सौरभ अधिकतर समय चहक के साथ खेलने मे, उसे खिलाने मे, कहानियां सुनाने मे बिताता. सुबह आफिस जाते वक्त, चहक को उसके दादा दादी के पास छोड़ जाता और शाम को वापसी मे कुछ समय उनके साथ व्यतीत करके, चहक को ले कर घर आ जाता, तब तक माया भी घर वापिस आ जाती. चहक के साथ दादा दादी का समय भी अच्छे से गुजरने लगा था और चहक भी बहुत खुश थी. चहक तीन बरस की होने वाली थी, उसके स्कूल एडमिशन के बारे मे डिस्कशन होने लगा था, सौरभ चाहता था एडमिशन पास के स्कूल में हो जिससे बाकी समय चहक दादा दादी के साथ बिता सके और सुबह शाम वो और चहक साथ साथ खिलखिला सकें, परन्तु माया बोर्डिंग स्कूल के लिए ही अड़ी थी. दोनों मे बहस बहुत बढ़ गई. सौरभ जब नहीं माना तो माया ने एक बम्ब फोड़ा “चहक तुम्हारी बेटी नहीं है, तुम्हें कोई अधिकार नहीं कि ये कहां पढ़ें और कहां नहीं” सौरभ के तो कानों मे जैसे किसी ने उबलता लावा डाल दिया हो, उसे विश्वास ही नहीं हुआ, परन्तु माया ने भी बहुत दर्ढ़ता से कहा था और कह कर आफिस चली गई थी, सुमित वहीं बैठा ही रह गया था. दिमाग मे बहुत कुछ उमड़ घुमड़ करता रहा, आखिर दिल पर पत्थर रख कर उसने एक प्राइवेट लैब से चहक का डी. एन. ए. टैस्ट करवा ही लिया. पर ये क्या टैस्ट रिपोर्ट ने तो उसके मुहं पर थपड़ मारा था ‘चहक उसकी बेटी नहीं’. सौरभ सोचने लगा ‘लेकिन वो तो चहक से इतना प्यार करता है नहीं ऐसा नहीं हो सकता. दूसरी लैब से टैस्ट करवाता हूं.’ परन्तु दूसरी रिपोर्ट भी यही कह रही थी. आखिर माया ने सच ही कहा था, सौरभ का सिर दर्द से फटने लगा. माया के घर आते ही उसने प्रशन किया ‘माया, तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?’ माया ने तो बेशर्मी से जवाब दे दिया “मैं एक लड़के से प्यार करती हूं और चहक उसकी बेटी है” सौरभ पर तो जैसे बिजली ही गिर गई. सौरभ तो पूरी तरह टूट ही गया, उसने कह ही दिया “ऐसा है तो हम दोनो का साथ रहने का कोई मतलब नहीं है.” माया घर  छोड़ कर तो गई,  परन्तु चहक को अपने साथ ले गई. सौरभ को चहक की बहुत याद आती, आखिर उसने उसे पाला तो बेटी समझ कर ही था. उसे लगता कि कहीं माया, चहक को भी अपनी तरह ही न बना दे. इधर  सौरभ ने चहक की कसटडी के लिए एपलिकेशन डाली, उधर माया ने दहेज प्रताड़ना , घरेलू हिंसा और फलैट के लिए केस. सौरभ ने कोर्ट मे प्राइवेट लैब की डी एन ए टैस्ट की रिपोर्ट दिखा दी है और  कोर्ट मान भी गया है कि दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा के झूठे केस सौरभ को डराने के लिए किए गए थे. सौरभ को डाइवोर्स भी मिल ही जाएगा. परन्तु  “क्या कोर्ट इस पापा की बात मानेगा? क्या चहक की कस्टडी सौरभ को मिलेगी?”

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