मानव वैडस इच्छा

इच्छा की मानव से शादी को पांच दिन ही हुए थे, मानव के एक दोस्त आदित्य की शादी परसों ही प्रिया से हुई थी.

मानव वैडस इच्छा तथा आदित्य वैडस प्रिया की खुशी में दोस्तों ने ये पार्टी रखी थी. वैसे तो मानव और आदित्य इकट्ठे ही पढ़े थे, परन्तु दोनों के आर्थिक सटेटस मे काफी फर्क था. इच्छा पार्टी मे गई तो खुशी खुशी, पर पहुंचते ही उसका मूड आफ हो गया. उसकी आंखें प्रिया के गहनों पर टिकी ही रह गई. प्रिया के हीरों के डिजाइनर आभूषणों के सामने, इच्छा के सोने के हलके गहने कहीं ठहर नहीं रहे थे. इच्छा के ह्रदय को एक बहुत बड़ी ठेस लगी. मानव उसे आदित्य के सामने कहीं भी ठहरता नजर नहीं आ रहा था. वापिस आते समय उसका तन बदन गुस्से से भरा हुआ था.

घर पहुंच कर इच्छा ने अपना सारा गुस्सा मानव पर निकाला, ऐसे ऐसे ताने कसे कि नई-नई शादी का उत्साह, प्यार, रेत की तरह मुट्ठी मे से निकल गया. वैसे तो गहनों के प्रति स्त्रियों का आर्कषन स्वभाविक ही है. खासकर उन स्त्रियों का जिनमें दूसरे गुणों की कमी हो. वो गहनों, कपड़ों, फैशन से अपने को सजा कर, तारीफ पाने की लालसा में रहती है.

मां बाप बचपन मे बच्चों की हर फरमाइश पूरी करने की कोशिश मे कई बार इच्छा की तरह उन्हें जिद्दी बना देते हैं.  इधर अपनी इच्छाएं पूरी न होने पर इच्छा निराश थी तो दूसरी ओर घर के बढ़ते खर्चों को देख मानव परेशान. सोचा था कि इच्छा और उसकी तनख्वाह मिल कर डबल हो जाएगी तो घर अच्छी तरह चलेगा. लेकिन इच्छा ने तो घर आते ही, ये कहते हुए नोकरी छोड़ दी कि “नोकरी तो मै सिर्फ शादी के लिए कर रही थी.” जितने मे वो पहले अपने अकेले का खर्चा उठाता था, अब उसे दो का खर्चा उठाना पड़ रहा था. मानव क्या कहता वो तो वैसे भी ईटरोवरट, अघिकतर चुप रहता, कभी मनाने की कोशिश करता तो सुनाई पड़ता ” जान गई तुम्हारा प्यार, एक हार तो ला कर दिया नहीं गया”.

अगर मां बार बार बच्चों के सामने अपने पति की बुराइयां करती है, तो असर बच्चों पर आ ही जाता है. इच्छा को मानव मे सभी बुराइयाँ ही दिखती, जो ढूंढोगे वही तो मिलेगा. शायद अच्छाईयां ढूंढती तो वो भी मिल जाती.  आए दिन गहनों, कपडों, पार्लर के लिए धन की मांग ने मानव के मन को खट्टा कर दिया. परन्तु फिर भी कोशिश करता कि किसी तरह ओवरटाइम करके इच्छा की यह इच्छा भी पूरी कर सके. लड़कों को तो बचपन से ही घुट्टी पिलाई जाती है कि परिवार मे सभी की आशाएं तुम्हें ही पूरी करनी हैं. लेकिन मानव का आफिस में अधिक समय लगाना इच्छा को नागवार गुजरता. और तो और अब तो मानव को दहेज न मांगने के लिए भी ताने मिलने लगे. “अगर तुम मांग लेते तो ससुराल से नहीं तो कम से कम माएके से ही मिल जाते, यहां तो माएके वालों ने भी मुफ्त में भेज दिया.” जितना मानव इच्छा के साथ कम बात करता, उतना ही ज्यादा समय इच्छा फेस बुक, व्हट्सएप पर बिताती. नए नए कपड़ो में सैल्फी खींच कर प्रोफाइल पर डालती, कई स्वप्नों को अपना फेसबुक दोस्त बना लिया, उनके लाइक करने से इसका इगो भी सैटिसफाई होने लगा. लेकिन जब एक इच्छा पूरी होती है तो दूसरी इच्छा पैदा हो ही जाती है. अब दिन भर माल मे घूमों बिना खरीदे ड्रेस चेंज करके सैलफी खींचो और अपलोड कर दो. राजकुमारों को एफ बी पर फ्रेंड बनाओ और लाईक पाओ. प्रोफाइल पिक पर लाईक का नशा शराब से कम नहीं होता. लाईकस से अपनी ‘मैरिज मारकिट वैल्यू’ का आकंलन करती.  हमेशा मन मे रहता कि काश किसी सपनों के राजकुमार से मेरी शादी होती. मेरे घर वालों ने जल्दी मे मेरी इस गरीब से शादी कर दी, नहीं तो मैं आज रानी की तरह राज कर रही होती. अब मानव का घर आना ही उसे अखरने लगा. आए दिन माएके जाने की धमकी देने लगी. बेचारा मानव उसे किसी तरह रोकता. कभी चली जाती तो मना कर वापिस ले आता.  चाहता था बात मां बाप तक पहुंच कर, उन्हें दुखी न करे. वो कर भी क्या सकते थे. वैसे भी पति और पति परिवार को बहू का दुश्मन ही माना जाता है, उनकी तो किसी ने क्या सुननी थी.

कुछ लड़कियां चाहती हैं जो वस्तु या आजादी हमें शादी से पहले मां बाप से नहीं मिली, वो सब हमें शादी के बाद मिले. मां बाप भी कहते है “शादी के बाद तू जो मर्जी करना, अभी तो हमारे हिसाब से रह, हमारी इज्ज़त मत खराब कर.” एक दिन इच्छा ने कह ही दिया “अगर मेरे खर्चे नहीं उठा सकते थे तो ब्याह कर ही क्यों लाए?” परन्तु मानव चाहते हुए भी नहीं कह पाया “अगर मेरी कमाई में तुम अपना खर्च नहीं चला सकती थी, तो शादी ही क्यों की.”  आदमी सब कुछ सह सकता है, अपनी कमाने की शक्ति की तुलना दूसरों से नहीं. यह तो उसके पौरुष पर आघात होता है.

आए दिन ताने कसे जाने लगे, घर मे झगड़े बढ़ने लगे. जो आवाजें कमरे के दरवाजों मे दबी ढकी थी, कमरे से बाहर आने लगी. इच्छा अपने माएके में मानव की मनघड़ंत  शिकायतें कर के रोने लगती. बेटी का एक आंसू, मां बाप के गुस्से मे घी का काम करता है. माएके वाले भी सच्चाई जानने की बजाए, मानव को ही दोषी ठहराते और पुलिस की धमकी देते. पुलिस की धमकियों से क्या रिश्तों में मिठास आती है, क्या प्यार पैदा होता है या पति गहनों से पत्नी की झोली भरता है.

मानव क्या करता, लडके तो वैसे भी कम बोलते हैं. वो एक ऐसी जीवनसाथी की अपेक्षा करते हैं जो बिना कहे ही उनकी भावनाओं को समझ जाए और उन्हें भावनात्मक सहारा दे, परन्तु यहां तो तानों की बौछार हो रही थी. जिस घर में एक पति की इज़्ज़त सिर्फ पैसे कमाने की मशीन उर्फ ‘ए टी एम कार्ड’ से अधिक न हो, वहां आने का मन किस का करेगा. आफिस से घर आना और अपने कमरे मे जाना मानव को सजा से कम नहीं लगता था. उसके कानों मे इच्छा के तीखे शब्द “आदित्य ने प्रिया को जैसा हार दिलवाया है, वैसा ही हीरे का नैकलेस जब तक मुझे नहीं दोगे, मुझे हाथ मत लगाना” गूंजने लगते. क्या किसी को नीचा दिखाने से, उसके आत्मसम्मान पर चोट करने से अपनी नाजायज मांगे पूरी हुई हैं.

आखिरकार जो होना था वो हुआ. उसकी आभूषणों की मांग अभी भी अधूरी थी. घर का काम करना, उसे अपने समय का दुरुपयोग लगता. आफिस से थका  हारा घर लोटने पर अगर कोई पानी भी न पूछे, खाना भी न मिले तो कैसा लगता है. अगर तबियत खराब हो तो समझ मे आता है, परन्तु यहां तो यह हर रोज की कहानी थी. ऐतराज प्रकट करने पर सुनना पड़ा “मैं तुम्हारी नोकरानी तो हूं नहीं. जो मन मे आएगा करूंगी. क्या भगवान ने मुझे तुम्हारा खाना बनाने के लिए पैदा किया है.” मानव कुछ जवाब तो दे नहीं पाया, बस अपना गुस्सा बेजुबान क्राकरी पर निकाला. आवाज़ अड़ोस पड़ोस तक तो पहुंचनी ही थी. इच्छा ने टी वी सिरयलों जैसी कहानियां बना कर, उनकी प्रशनवाचक निगाहों को चुप करा दिया. जो मानव के सरल, मधुर स्वभाव को बचपन से जानते थे, वो तो नहीं माने. परन्तु इससे इच्छा को कुछ लोगों सहानुभूति तो मिल ही गई. किसी ने उसे अगली बार सो नम्बर पर फोन करने की सलाह दे ही दी. मीडिया द्वारा फैलाई जाने वाली एक तरफा महिलाओं के आंसुओं के सीरियल वैसे भी लोगों के दिमाग की सोचने की शक्ति को बंद कर चुके होते हैं.

दिन रात इच्छा को मोबाइल पर बीज़ी देखने पर जब मानव ने आबजैकशन उठाई तो मानव का नाम उसकी सहयोगिनियों के साथ जोड़ दिया गया. इस बार मानव का गुस्सा अपने मोबाइल पर निकला. मोबाइल तो मानव का टूटा था परन्तु पुलिस इच्छा ने बुलाई. पुलिस कोई पड़ोसी, तमाशाबीनों की तरह कच्ची खिलाड़ी तो होती नहीं. उसे सच्च और झूठ का अंतर देखते ही समझ आ जाता है. पुलिस ने जब पूछताछ की तो मानव ने मोबाइल की बात बता ही दी. अब तो इच्छा की सब के सामने बेइज्जती सु हो गई. अपनी दाल न गलते देख, इच्छा ने माएके जाने के लिए शोर मचा दिया, तो मानव ने न हीं रोका, उसे सब कुछ ले कर जाने दिया और न ही पहले की तरह वापिस ले कर आया.

इच्छा पर अब कोई बंधन नहीं था, समय ही समय था. खुश थी, न कोई रोक टोक, न ही काम. जिस घर को अपनाया ही नहीं, उसे छोड़ने का दुख कैसा. सोशल मीडिया पर कई राजकुमार फैन बन गए. जानपहचान वालों को पूछने पर बता दिया जाता कि “पति विदेश गए हैं”. “पति साधारण सी प्राइवेट नोकरी करता है”. उन्हें ये बताते हुए तो शर्म आती थी. चाहे अब सहानुभूति देने वाले कई फेसबुकिया खाली पीली मिल गए थे, पर गहने तो अभी भी नही मिले. प्रिंस चाहे कितना ही अमीर क्यों न हो, किसी पर अपना धन ऐसे तो नहीं उड़ाऐगा, राजकुमार चाहे कितना भी  खाली क्यों न हो, किसी के सच्चे झूठे दुखड़े दिन भर मुफ्त मे तो नहीं सुनेगा. वो लोग तो पता नहीं क्या सोच कर लाईक कर देते हैं. अब पैसों की जरूरत महसूस हुई तो किसी ने सलाह दी पति पर केस लगा दो, जो पति तब खर्च करने से कतराता था, अब झक मार कर देगा. माएके मे बैठे बैठे आमदनी होती रहेगी. फटाफट दहेज प्रताड़ना, घरेलू हिंसा, अटैंपट टू मृडर, रेप का प्रयास, मेंटेनेंस आदि के पेपरों पर साइन कर दिए. माएके वालों ने भी साथ दिया, सोचा नाक रगड़ता हुआ आएगा और वापिस ले जाएगा, अपनी इज्ज़त ढकी रहेगी. केस सालों साल चलते रहे. मगर ऐसा कुछ न हुआ, सिवाय मानव का पैसा और समय बरबाद होने के. जो पैसा कभी इच्छा के पास आना था , वो अब वकीलों के घर चला गया. समय के साथ साथ इच्छा को भी धरातल का एहसास होने लगी.  उसे अब अकेलापन काटने लगा था.  परन्तु अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत. उसकी समझ मे कुछ नहीं आ रहा था.

मानव ने जब कोर्ट, कचहरी के चक्कर काटे तो अपने जैसे अनेकों पुरुषों के सम्पर्क मे आया, ऐसे झूठे आरोपों मे फंसा वह कोई अकेला तो था नही. हर एक की एक अलग कहानी थी, पर अंत एक ही था, इन झूठे मुकदमों मे फंसना.  दोस्तों ने ढाढस बंधाया, समाज में मुहं उठा कर चलने की हिम्मत दी. अब तो वास्तव में दोस्तों ने जीना सिखा दिया था. अब जिंदगी जीने का मतलब ही बदल गया था. बहुत दिनों बाद मानव अपनी जिंदगी अपने लिए जीने लगा था.

विद्यालय के 2004 बैच की  एलमनायी एसोसिएशन की 15वी वर्षगाठ की पार्टी थी. पार्टी सपरिवार थी, मानव को जाना कुछ अटपटा लग रहा था, परन्तु फिर भी पुराने दोस्त जिद्द करके उसे खींच ही लाए. इतने वर्षों की पुरानी, गहरी मित्रता हो, तो परसनल बातें भी डिस्कस होने लग ही जाती हैं. पवन को पूरी कहानी तो मालूम थी नहीं, उसने कह ही लिया “मानव ऐसे कब तक रहोगे, अब इच्छा को वापिस ले ही आओ.” लेकिन मानव नहीं माना बोला “क्यों वापिस लाऊं? कैसे अपना अपमान भूल जाऊं? कैसे अपने परिवार पर लगे झूठे आरोपों से किनारा कर लूं? जब पुलिस, कोर्ट, कचहरी कर के वह घर की इज्ज़त को सड़क पर ले ही आई, तो क्या अब मैं उसे ला कर, वह इज्ज़त वापिस पा लूंगा.” विवेक ने सजैसट किया “तलाक ले लो और दूसरी शादी कर लो.” मानव के मन मे उमड़ते विचार होठों पर आ गए ” क्या गारंटी है कि दूसरी वैसी नहीं निकलेगी? आजकल कई परिवार टूटने की कागार पर हैं उनमे से अधिकतर तो झूठे मुकदमों मे फसे हैं. सबसे महत्वपूर्ण शादी की हमारे जीवन मे आवश्यकता ही क्या है? शादी से हमें मिलता ही क्या है?” किसी के पास कोई उतर नहीं था.

आखिर मानव क्या करे?

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