On International Men’s Day
पुरुष तेरे कितने रूप –
तू पिता, भाई, बेटा, दोस्त/यार/मित्र, प्रेमी, पति, दामाद/जमाई, मामा, चाचा/काका, भांजा, भतीजा, आदि…
तू मेहनतकश किसान, ईटा-भट्टी मजदूर, सैनिक, रिक्षा-चालक, आदि…
तू चलाता है परिवार, करके रात-दिन मेहनत तू पढाता-लिखाता है बेटी-बेटों को…
तू देता है अनगिनत, अनउल्लेखित, अचरचित कुर्बानियां चुपचाप सहज ही…
सह जाता शारिरीक श्रम की पतन को, मानसिक परेशानी की तकलिफों को, सामाजिक दंश को चुपचाप सहज ही…
तू रो पड़े तो कमजोर कहलाता, लड़ पड़े तो निर्दयी कहलाता, बच्चा न जन सके तो नामर्द कहलाता…
दूख तकलिफ तूझे भी है घेरती…
प्रेम और विवाह संबंध में तू भी है धोखा खाता…
आत्महत्या, प्रताड़न, घरेलू तथा बाहरी हिंसा, लैंगिक शोषण, आर्थिक शोषण, दैनिक उत्पीड़न का खतरा तेरे भी सिर पर है मंडराता…
फिर भी इस देश के,
*शासन व्यवस्था से #पुरुष_विकास_मंत्रालय* लापता हैं
*प्रशासन व्यवस्था से #पुरुष_तक्रार_निवारण_केंद्र* लापता हैं
*विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों से #पुरुष_संशोधन_केंद्र* लापता हैं
*न्याय व्यवस्था से #पुरूष_के_घरेलू_हींसा_से_बचाव* कानून लापता हैं
डाॅ. मिथुन खेरडे
*#इंटरनेशनल_मेनस्_डे_19नवंबरसिंहासन *